महाकुंभ 2025: 1500 साधुओं ने लिया नागा संन्यासी की दीक्षा, जानिए कैसे बनते हैं नागा साधु

प्रयागराज: महाकुंभ और कुंभ मेले की पहचान नागा साधुओं के बिना अधूरी है। यह दिव्य आयोजन नागा साधुओं के आध्यात्मिक योगदान और उनकी उपस्थिति से और भी भव्य बनता है। नागा साधु बनने की प्रक्रिया जितनी कठिन और गहन है, उतनी ही प्रेरणादायक भी। शनिवार को प्रयागराज में 1500 साधुओं ने जूना अखाड़ा में नागा संन्यासी बनने की दीक्षा ग्रहण की।

नागा साधु बनने की कठिन यात्रा

नागा साधु बनना सरल नहीं है। अखाड़ा परिषद द्वारा यह दीक्षा प्रक्रिया आयोजित की जाती है, जो साधक की तपस्या और त्याग की परीक्षा लेती है। इस प्रक्रिया में 6 महीने से 1 साल का समय लगता है। साधक को दीक्षा के लिए पंच देवों — शिव, विष्णु, शक्ति, सूर्य और गणेश से प्रेरणा और मार्गदर्शन लेना होता है। इन देवी-देवताओं को ‘पंच देव’ कहा जाता है।

नागा साधु बनने के लिए साधक को सांसारिक जीवन का पूर्ण त्याग करना होता है। वे अपनी माता-पिता और सात पीढ़ियों का पिंडदान करते हैं, जिससे उनका अपने परिवार से कोई संबंध नहीं रह जाता। इस प्रक्रिया के बाद वे पूरी तरह सनातन धर्म, वैदिक परंपराओं और जनकल्याण के लिए समर्पित हो जाते हैं।

पिंडदान और अमृत स्नान

दीक्षा लेने वाले साधुओं ने अपने माता-पिता और पूर्वजों के पिंडदान के साथ स्वयं का भी पिंडदान किया। यह संकेत है कि उन्होंने अपने सांसारिक जीवन को पूरी तरह त्याग दिया है। इसके बाद सभी साधुओं को अमृत स्नान के लिए संगम घाट ले जाया गया, जो नागा साधु बनने की अंतिम और पवित्र प्रक्रिया है।

चयन प्रक्रिया

नागा साधु बनने की शुरुआत रजिस्ट्रेशन से होती है। इच्छुक साधक को पंजीकरण करवाने के बाद उनके आवेदन की गहन स्क्रीनिंग की जाती है। यह जांच सुनिश्चित करती है कि साधक पर कोई आपराधिक मामला या अनैतिक आचरण का रिकॉर्ड न हो।
स्क्रीनिंग में पास होने के बाद साधकों को अखाड़े के आचार्यों और वरिष्ठ संतों के इंटरव्यू से गुजरना पड़ता है। इंटरव्यू में पास होने के बाद ही उन्हें नागा साधु बनने के लिए चुना जाता है।

दीक्षा समारोह

दीक्षा के दौरान अखाड़े के आचार्य महामंडलेश्वर साधुओं को नागा साधु बनने की विधियों का पालन करवाते हैं। इसके बाद साधुओं को अखाड़े के नियम समझाए जाते हैं और शपथ दिलाई जाती है।

भिक्षा पर जीवन और कठोर अनुशासन

नागा साधु केवल भिक्षा से प्राप्त भोजन ग्रहण करते हैं। अगर उन्हें भिक्षा नहीं मिलती तो वे उस दिन उपवास रखते हैं। यह साधुओं के कठोर अनुशासन और त्याग का प्रतीक है।

महाकुंभ 2025 में दीक्षा लेने वाले ये 1500 नागा साधु अब जीवन भर सनातन धर्म और वैदिक परंपराओं की रक्षा में समर्पित रहेंगे।

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