दवा कंपनियों ने नए विनिर्माण नियमों की समयसीमा पर जताई चिंता, स्वास्थ्य मंत्री से हस्तक्षेप की मांग

देशभर की 20 से अधिक मझौली, छोटी और सूक्ष्म (MSME) दवा निर्माता कंपनियों की एसोसिएशनों ने केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री जेपी नड्डा को पत्र लिखकर केंद्रीय औषधि मानक नियंत्रण संगठन (CDSCO) द्वारा लागू किए जा रहे नए विनिर्माण मानकों (GMP – गुड मैन्युफैक्चरिंग प्रैक्टिसेस) पर चिंता जताई है. संघों का कहना है कि इन मानकों को “अचानक” लागू करने की तय समयसीमा बहुत कम है, जिससे उन्हें तैयारी का पर्याप्त समय नहीं मिल पा रहा है और इससे हजारों इकाइयों को बंद करने की नौबत आ सकती है.

फार्मास्युटिकल एमएसएमईज का संयुक्त मंच- जिसमें लघु उद्योग भारती, फेडरेशन ऑफ फार्मास्युटिकल एंटरप्रेन्योर्स (बद्दी), कन्फेडरेशन ऑफ इंडियन फार्मास्युटिकल इंडस्ट्री, हिमाचल ड्रग मैन्युफैक्चरर्स एसोसिएशन, हरियाणा, कर्नाटक आदि राज्य स्तरीय संघ शामिल हैं- ने आरोप लगाया कि CDSCO का यह कदम बड़े कॉरपोरेट्स और बहुराष्ट्रीय कंपनियों के दबाव में उठाया गया है और इसका उद्देश्य भारतीय फार्मा एमएसएमईज को बंद करना प्रतीत होता है.

पत्र में कहा गया है कि नए नियम “ईज ऑफ डूइंग बिजनेस” के खिलाफ हैं और इससे सस्ती दवाओं की उपलब्धता पर असर पड़ेगा. जनवरी 1, 2026 से लागू होने वाले संशोधित जीएमपी नियमों को बिना MSME सेक्टर की आपत्तियों और सुझावों पर विचार किए लागू कर दिया गया. संघों ने दावा किया कि ये मानक अत्यंत कठोर हैं और MSMEs पहले से ही भारी निवेश करने की कोशिश कर रहे हैं, लेकिन मौजूदा कर्ज ढांचे के कारण लगभग 4,000 से 5,000 इकाइयों को बंद करना पड़ सकता है क्योंकि वे समयसीमा में जरूरी निवेश और गारंटी की व्यवस्था नहीं कर सकते.

इसलिए संघों ने 50 करोड़ रुपये से कम वार्षिक टर्नओवर वाली इकाइयों के लिए अप्रैल 2027 तक समयसीमा बढ़ाने की मांग की है. साथ ही पत्र में यह भी आरोप लगाया गया कि जोखिम-आधारित निरीक्षण (Risk-based Inspections) चयनात्मक रूप से केवल MSME इकाइयों पर केंद्रित हैं. CDSCO द्वारा हाल ही में निर्यात के लिए NOC (अनापत्ति प्रमाण पत्र) की अनिवार्यता को लेकर भी चिंता जताई गई है.

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