दीवाली से ठीक पहले क्यों मनाई जाती है नरक चतुर्दशी ? जानिए इसके पीछे की रोचक कहानी

हिंदू धर्म में नरक चतुर्दशी का महत्वपूर्ण स्थान है, जिसे हर साल कार्तिक मास के कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी तिथि को मनाया जाता है। यह पर्व काली चतुर्दशी और रूप चौदस के नाम से भी जाना जाता है और इसे दीवाली से एक दिन पहले मनाया जाता है। इस दिन मृत्यु के देवता यमराज की पूजा का विधान है।

कब है नरक चतुर्दशी?

इस साल नरक चतुर्दशी 31 अक्टूबर, 2024 (गुरुवार) को मनाई जाएगी। हिंदू पंचांग के अनुसार, चतुर्दशी तिथि का आरंभ 30 अक्टूबर की सुबह 01:15 मिनट से होगा और इसका समापन 31 अक्टूबर को दोपहर 03:52 मिनट पर होगा। इस दिन घर की दक्षिण दिशा में यम के नाम का दीप जलाने की परंपरा है, और अन्य स्थानों पर भी दीवाली की तरह दीप जलाए जाते हैं। यही कारण है कि नरक चतुर्दशी को छोटी दीवाली भी कहा जाता है।

पौराणिक कथा

नरक चतुर्दशी की पौराणिक कथा नरकासुर नामक एक अत्याचारी राक्षस से जुड़ी है, जिसने स्वर्ग और धरती पर हाहाकार मचा रखा था। नरकासुर ने 16,000 कन्याओं को बंदी बना रखा था, जिसके अत्याचारों से देवता और मानव दोनों परेशान थे।

देवराज इंद्र ने नरकासुर के अत्याचारों से तंग आकर भगवान श्री कृष्ण की शरण ली। भगवान कृष्ण को पता था कि नरकासुर केवल स्त्री के हाथों से मारा जा सकता है। इसके बाद, भगवान श्री कृष्ण अपनी पत्नी सत्यभामा के साथ गरुड़ पर सवार होकर नरकासुर के पास गए।

श्री कृष्ण ने नरकासुर के पुत्रों और दैत्य मुर को मार गिराया। अंततः, सत्यभामा की मदद से उन्होंने नरकासुर को भी पराजित किया। नरकासुर का वध कार्तिक मास की कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी को हुआ, इसीलिए इस दिन को नरक चतुर्दशी कहा जाता है। भगवान श्री कृष्ण ने इस दिन 16,000 कन्याओं को नरकासुर की कैद से मुक्त किया, जिस खुशी में दीप जलाकर जश्न मनाया गया।

इस प्रकार, नरक चतुर्दशी न केवल धार्मिक महत्व रखती है, बल्कि यह एक पौराणिक कथा के माध्यम से अच्छाई की बुराई पर विजय की भी कहानी बताती है।

error: Content is protected !!