मालेगांव ब्लास्ट केस में सभी आरोपियों के बरी होने के बाद एक बड़ा खुलासा सामने आया है। महाराष्ट्र एटीएस के एक पूर्व अधिकारी महबूब मुजावर ने दावा किया है कि उन्हें आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत को गिरफ्तार करने का आदेश मिला था। उन्होंने कहा कि “भगवा आतंकवाद” एक झूठा नैरेटिव था और उन्हें इस थ्योरी को साबित करने के लिए इस्तेमाल किया गया।
पूर्व अधिकारी ने बताया कि उन्हें इस केस में शामिल करने का मकसद भगवा आतंकवाद की अवधारणा को स्थापित करना था। उन्होंने आरोप लगाया कि उस समय के जांच अधिकारी परमबीर सिंह और वरिष्ठ अधिकारियों ने उन्हें भागवत को फंसाने के निर्देश दिए थे। मुजावर के अनुसार, सरकार और एजेंसियों का उद्देश्य था कि कुछ निर्दोष लोगों को इस केस में जबरन घसीटा जाए।
मुजावर ने दावा किया कि जिन दो संदिग्धों, संदीप डांगे और रामजी कलसंगरा की पहले ही मौत हो चुकी थी, उन्हें जानबूझकर चार्जशीट में जीवित दिखाया गया। जब उन्होंने इसका विरोध किया तो उनके खिलाफ झूठे मुकदमे दर्ज कर दिए गए। उन्होंने कहा कि वह कोर्ट में निर्दोष साबित हुए लेकिन इससे उनका करियर बर्बाद हो गया।
पूर्व अधिकारी ने कहा कि अब जबकि कोर्ट ने सभी 7 आरोपियों को बरी कर दिया है, उन्हें संतोष है कि सच सामने आया। उन्होंने कहा कि फैसले से एटीएस की उस जांच की सच्चाई उजागर हो गई, जो फर्जी थी।
उन्होंने यह भी कहा कि तत्कालीन गृहमंत्री सुशील कुमार शिंदे को अब सामने आकर यह साफ करना चाहिए कि क्या “हिंदू आतंकवाद” जैसा कोई सिद्धांत वास्तव में था।
महबूब मुजावर के अनुसार, उन्होंने मोहन भागवत को पकड़ने के आदेश को मानने से इनकार कर दिया क्योंकि वे न सिर्फ गलत थे, बल्कि उनके नतीजे गंभीर हो सकते थे। उन्होंने कहा कि उनके पास अपने दावों के समर्थन में दस्तावेजी प्रमाण मौजूद हैं।
गौरतलब है कि 2008 में मालेगांव में हुए धमाके में 6 लोगों की मौत हुई थी और 100 से अधिक घायल हुए थे। पहले इस मामले की जांच एटीएस ने की थी, बाद में इसे एनआईए को सौंपा गया। 17 साल बाद कोर्ट ने सभी आरोपियों को बरी कर दिया।