लोकतंत्र और संविधान की व्याख्या हर किसी का काम नहीं है; यह जिम्मेदारी सुप्रीम कोर्ट की है। हाल ही में तमिलनाडु सरकार और राज्यपाल एन. रवि के बीच अधिकारों के झगड़े पर सुप्रीम कोर्ट ने 20 नवंबर को फैसला सुनाया। अदालत ने स्पष्ट किया कि राज्यपाल विधानसभा से पास हुए विधेयकों को अनिश्चितकाल तक रोक नहीं सकते। संविधान पीठ में चीफ जस्टिस बी.आर. गवई, जस्टिस सूर्यकांत, जस्टिस विक्रमनाथ, जस्टिस पी.एस. नरसिम्हा और जस्टिस चंद्रचोड़कर शामिल थे।
पीठ ने अनुच्छेद 200 के तहत राज्यपालों के तीन विकल्प तय किए हैं—विधेयक को मंजूरी देना, राष्ट्रपति को भेजना या सुझावों सहित लौटाना। कोई चौथा विकल्प नहीं है। अदालत ने यह भी कहा कि लंबी निष्क्रियता की स्थिति में सीमित न्यायिक समीक्षा संभव है, जबकि सामान्य निर्णयों पर राज्यपाल न्यायिक कार्यवाही से मुक्त हैं।
तमिलनाडु में करीब 10 बिल लंबे समय तक रुके थे। इसके अलावा केरल, कर्नाटक और पंजाब में भी कई बिल राष्ट्रपति मंजूरी के लिए लंबित हैं। सुप्रीम कोर्ट ने यह सुनिश्चित किया कि राज्यपाल अपने संवैधानिक कर्तव्यों का समयबद्ध पालन करें और किसी भी अनिश्चितकालीन रोक को न्यायिक निगरानी के दायरे में लाया जा सके।


