बांधवगढ़ टाइगर रिजर्व में खास परंपरा: जन्माष्टमी पर भगवान श्रीराम की पूजा कान्हा के रूप में

बांधवगढ़ टाइगर रिजर्व, जिसे बाघों का साम्राज्य कहा जाता है, जन्माष्टमी के मौके पर आध्यात्मिक रंग में रंग जाता है। जंगल के बीच स्थित प्राचीन किले में बने श्रीराम-जानकी मंदिर के कपाट साल में केवल एक बार, जन्माष्टमी पर श्रद्धालुओं के लिए खोले जाते हैं।

भगवान श्रीराम को कान्हा और माता सीता को राधारानी मानकर पूजा

इस मंदिर की विशेषता यह है कि यहां भगवान श्रीराम की आराधना कान्हा के रूप में और माता सीता की पूजा राधारानी के रूप में की जाती है। शनिवार को हजारों श्रद्धालु ताला गांव से 15 किलोमीटर पैदल यात्रा कर मंदिर पहुंचे। दोपहर तक करीब 8 हजार भक्त दर्शन कर चुके थे।

रीवा राजघराने की परंपरा

बांधवगढ़ किले में पूजा-अर्चना की यह परंपरा रीवा राजघराने से जुड़ी हुई है। इस बार भी सिरमौर विधायक दिव्यराज सिंह समेत राजपरिवार के सदस्य आयोजन में शामिल हुए।

महाराजा मार्तंड सिंह की शर्त

1970 के दशक में बांधवगढ़ को टाइगर रिजर्व घोषित किया गया था। उस समय महाराजा मार्तंड सिंह ने शर्त रखी थी कि जन्माष्टमी का मेला और मंदिर में पूजा की परंपरा कभी खत्म नहीं होगी। इसी कारण हर साल इस दिन वन्यजीव संरक्षण कानून (Wildlife Act) में ढील दी जाती है और श्रद्धालुओं को मंदिर तक पहुंचने की अनुमति मिलती है।

ऐतिहासिक और धार्मिक महत्व

मान्यता है कि वनवास से लौटने के बाद भगवान श्रीराम ने यह किला अपने छोटे भाई लक्ष्मण को उपहार में दिया था। इसी वजह से इसका नाम पड़ा बांधवगढ़, यानी भाई का किला। इसका उल्लेख स्कंध पुराण और शिव संहिता में भी मिलता है।

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