1,000 से अधिक महिलाओं को ‘दीक्षा’ मिलकर अखाड़ों में मिलेगा प्रवेश

महाकुंभ केवल एक आध्यात्मिक आयोजन नहीं है, बल्कि यह महिला सशक्तिकरण और समावेशिता का प्रतीक भी बनता जा रहा है। 13 अखाड़े 29 जनवरी को मौनी अमावस्या के अवसर पर होने वाले अमृत स्नान के दौरान परंपरा और संस्कृति का प्रदर्शन करने के लिए पूरी तरह तैयार हैं।

इस वर्ष महाकुंभ में एक ऐतिहासिक बदलाव देखने को मिल रहा है, क्योंकि अखाड़े दीक्षा समारोह के माध्यम से संन्यासियों की नई पीढ़ी को शामिल करने की तैयारी कर रहे हैं, जिसमें महिलाओं की भागीदारी उल्लेखनीय रूप से बढ़ रही है। प्रयागराज महाकुंभ सनातन धर्म के इतिहास में एक नया अध्याय लिखने जा रहा है, क्योंकि इस बार अभूतपूर्व संख्या में महिला संन्यासियों को दीक्षा दी जा रही है।

महिलाओं की बढ़ती भागीदारी
संन्यासिनी श्री पंच दशनाम जूना अखाड़े की महिला संत दिव्या गिरि ने बताया कि इस महाकुंभ में उनके अखाड़े के तहत 200 से अधिक महिलाओं को संन्यास दीक्षा दी जाएगी। सभी अखाड़ों को मिलाकर यह संख्या 1,000 से अधिक होने की संभावना है, जो एक ऐतिहासिक मील का पत्थर साबित होगा। दीक्षा समारोह के लिए पंजीकरण पहले से ही जारी है, और अनुष्ठान 27 जनवरी को संपन्न होने की संभावना है।

दीक्षा का महत्व
सनातन धर्म में सांसारिक जीवन को त्यागकर वैराग्य का मार्ग अपनाने का निर्णय अक्सर आध्यात्मिक जागृति या जीवन में घटित परिवर्तनकारी घटनाओं के कारण लिया जाता है। दिव्या गिरि के अनुसार, इस वर्ष दीक्षा लेने वाली महिलाओं में अधिकांश उच्च शिक्षित हैं, जिन्होंने गहन आत्म-साक्षात्कार की खोज में यह मार्ग चुना है।

इनमें गुजरात के कालिदास रामटेक विश्वविद्यालय में संस्कृत में पीएचडी कर रहीं राधेनंद भारती भी शामिल हैं। राजकोट की रहने वाली राधेनंद भारती ने बताया कि वे एक समृद्ध व्यापारी परिवार से हैं, लेकिन आध्यात्मिक पूर्णता की खोज ने उन्हें सांसारिक जीवन त्यागने के लिए प्रेरित किया। वे पिछले 12 वर्षों से अपने गुरु की सेवा कर रही हैं और अब संन्यास दीक्षा के लिए तैयार हैं।

महिला शाखा का विस्तार
श्री पंच दशनाम जूना अखाड़ा महिलाओं के योगदान को मान्यता देने और उन्हें आगे बढ़ाने में अग्रणी रहा है। हाल ही में, अखाड़े ने अपनी महिला शाखा का नाम बदलकर संन्यासिनी श्री पंच दशनाम जूना अखाड़ा कर दिया है। यह बदलाव महिला संन्यासियों द्वारा प्रस्तावित किया गया था, जिसे उनके संरक्षक महंत हरि गिरि ने मंजूरी दी।

इस महाकुंभ में पहली बार महिला शाखा का अपना अलग शिविर होगा, जो नए नाम के साथ स्थापित किया जाएगा। दिव्या गिरि ने इसे एक बड़ी उपलब्धि बताते हुए कहा कि यह निर्णय परंपरागत पुरुष प्रधान ढांचे में मातृशक्ति के योगदान और आकांक्षाओं को मान्यता देने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है।

महाकुंभ 2025 न केवल आध्यात्मिकता का महापर्व होगा, बल्कि महिला सशक्तिकरण और धार्मिक समावेशिता का प्रतीक भी बनेगा।

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