मद्रास हाईकोर्ट ने वैवाहिक समानता पर ऐतिहासिक टिप्पणी करते हुए कहा कि शादी किसी पुरुष को पत्नी पर नियंत्रण या अधिकार नहीं देती. कोर्ट ने स्पष्ट किया कि भारतीय विवाह प्रणाली को पुरुष वर्चस्व से मुक्त होकर समानता, सम्मान और आपसी सहयोग के आधार पर आगे बढ़ना चाहिए.
यह फैसला एक बुजुर्ग दंपती के मामले में आया, जिसमें पत्नी के प्रति क्रूरता के आरोपों पर सुनवाई हो रही थी. जस्टिस एल. विक्टोरिया गौरी की बेंच ने 80 वर्षीय पति को IPC की धारा 498A के तहत दोषी करार देते हुए छह महीने की जेल और 5,000 रुपये का जुर्माना लगाया. जुर्माना न देने पर एक महीने की अतिरिक्त सजा होगी। कोर्ट ने निचली अदालत के बरी करने के फैसले को रद्द कर दिया.
महिला ने आरोप लगाया था कि पति ने शादी के बाद उसे मानसिक और शारीरिक रूप से प्रताड़ित किया, अलग रसोई में रहने को मजबूर किया, पूजा के सामान नष्ट किए, मारपीट की और फोन तक करने नहीं देता था. यहां तक कि उसने उसे चाकू मारने की कोशिश की और जहर देने की धमकी भी दी.
कोर्ट ने कहा कि महिलाओं का धैर्य उनकी सहमति नहीं माना जा सकता और उम्र क्रूरता को पवित्र नहीं बना सकती. अब समय है कि पुरुष यह समझें कि पत्नी का सम्मान, सुरक्षा और सुविधा विवाह का मुख्य दायित्व है, न कि गौण. यह फैसला भारतीय समाज में वैवाहिक समानता और महिला गरिमा की दिशा में एक महत्वपूर्ण संदेश देता है.


