किसी लड़की के स्तनों को पकड़ना, उसके पजामे का नाड़ा तोड़ना और उसे पुलिया के नीचे खींचने का प्रयास करना… बलात्कार या बलात्कार के प्रयास का आरोप लगाने के लिए पर्याप्त नहीं है. यह टिप्पणी इलाहाबाद हाईकोर्ट ने एक मामले की सुनवाई के दौरान की है. कासगंज के पटियाली थाने में दर्ज मामले की सुनवाई करते हुए यह टिप्पणी न्यायमूर्ति राम मनोहर मिश्र ने की. अदालत ने आरोपियों की आपराधिक पुनरीक्षण याचिका को स्वीकार करते हुए कहा कि इस मामले में बलात्कार के प्रयास के बजाय गंभीर यौन उत्पीड़न का मामला बनता है. कोर्ट ने यह भी स्पष्ट किया कि बलात्कार के प्रयास और अपराध की तैयारी के बीच अंतर को सही तरीके से समझना चाहिए.
हाई कोर्ट ने आरोपियों के खिलाफ भारतीय दंड संहिता की धारा 376 (बलात्कार) के बजाय धारा 354-बी (निर्वस्त्र करने के इरादे से हमला) और पॉक्सो अधिनियम की धारा 9/10 (गंभीर यौन हमला) के तहत मामला चलाने का आदेश दिया. अदालत ने यह भी कहा कि आरोपों के तथ्यों से बलात्कार के प्रयास को साबित नहीं किया जा सकता है. बता दें कि 2021 में कासगंज की एक अदालत ने दो आरोपियों, पवन और आकाश, को एक नाबालिग लड़की के साथ कथित तौर पर बलात्कार करने के आरोप में समन जारी किया था, जिसके बाद इस मामले पर पुनरीक्षण याचिका दायर की गई थी.
कोर्ट ने कहा कि आरोपियों के खिलाफ लगाए गए आरोप और घटनास्थल पर परिस्थितियों के आधार पर यह साबित नहीं हो रहा कि उन्होंने बलात्कार करने का प्रयास किया था. अभियोजन पक्ष के अनुसार, आरोपियों ने पीड़िता के स्तनों को पकड़ा और आकाश ने उसके पायजामे का नाड़ा तोड़ दिया और उसे खींचने की कोशिश की, लेकिन राहगीरों के हस्तक्षेप के कारण आरोपित मौके से भाग गए. अदालत ने यह भी कहा कि आरोपी के व्यवहार से यह नहीं लगता कि उसकी मंशा बलात्कार की थी. कोर्ट ने यह स्पष्ट किया कि इस मामले में बलात्कार का प्रयास साबित नहीं होता है.
