संविधान की प्रस्तावना से ‘धर्मनिरपेक्ष’ और ‘समाजवादी’ शब्द हटाने की मांग खारिज

न्यूज़ फिल्क्स भारत। सुप्रीम कोर्ट ने भारतीय संविधान की प्रस्तावना से ‘समाजवादी’ और ‘धर्मनिरपेक्ष’ शब्दों को हटाने की मांग वाली याचिका को खारिज कर दिया है। यह याचिका पूर्व राज्यसभा सदस्य सुब्रमण्यम स्वामी, वकील अश्विनी उपाध्याय और बलराम सिंह द्वारा दायर की गई थी।

सुप्रीम कोर्ट की खंडपीठ, जिसमें मुख्य न्यायाधीश संजीव खन्ना और न्यायमूर्ति पीवी संजय कुमार शामिल थे, ने कहा कि संसद के पास संविधान में संशोधन करने का अधिकार है, जिसमें प्रस्तावना भी शामिल है। बेंच ने ‘समाजवाद’ और ‘धर्मनिरपेक्षता’ शब्दों की भारतीय संदर्भ में प्रासंगिकता पर जोर दिया और इन सिद्धांतों से संबंधित नीतियां बनाने को सरकार का विशेषाधिकार बताया।

सुनवाई के दौरान, कोर्ट ने यह स्पष्ट किया कि ‘समाजवादी’ और ‘धर्मनिरपेक्ष’ शब्द संविधान की मूल संरचना का हिस्सा हैं। सीजेआई ने कहा कि हालांकि इन शब्दों की व्याख्या अलग-अलग तरीकों से की जा सकती है, लेकिन इनकी समझ भारतीय संदर्भ में ही की जानी चाहिए, न कि पश्चिमी व्याख्याओं के आधार पर।

गौरतलब है कि 1976 में इंदिरा गांधी सरकार द्वारा पेश किए गए 42वें संवैधानिक संशोधन के तहत संविधान की प्रस्तावना में ‘समाजवादी’ और ‘धर्मनिरपेक्ष’ शब्द जोड़े गए थे। इस संशोधन के साथ ही संविधान की प्रस्तावना में ‘संप्रभु, लोकतांत्रिक गणराज्य’ को ‘संप्रभु, समाजवादी, धर्मनिरपेक्ष, लोकतांत्रिक गणराज्य’ से बदल दिया गया था।

स्वामी ने अपनी याचिका में तर्क दिया था कि प्रस्तावना को बदला, संशोधित या निरस्त नहीं किया जा सकता। लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने इस दलील को खारिज कर दिया और संविधान के संशोधनों की वैधता पर जोर दिया।

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