इलाहाबाद हाईकोर्ट ने एक अहम निर्णय में स्पष्ट किया है कि यदि प्रेम संबंध लंबे समय तक आपसी सहमति से चलते हैं, तो उसमें बने शारीरिक संबंधों को दुष्कर्म की श्रेणी में नहीं रखा जा सकता. यह फैसला न्यायमूर्ति अरुण कुमार सिंह देशवाल की एकल पीठ ने महोबा जिले की एक महिला द्वारा सहकर्मी लेखपाल पर लगाए गए दुष्कर्म के आरोप पर सुनवाई करते हुए सुनाया.
महिला का आरोप था कि आरोपी ने शादी का झूठा वादा करके संबंध बनाए, लेकिन बाद में जातिगत कारणों से शादी से इनकार कर दिया. साथ ही, नशीला पदार्थ खिलाकर दुष्कर्म और वीडियो बनाकर ब्लैकमेल करने का भी आरोप लगाया गया. हालांकि, आरोपी के वकील ने तर्क दिया कि यह मामला आपसी सहमति का है और महिला ने पहले किसी भी कार्रवाई से इनकार किया था. साथ ही यह भी बताया गया कि महिला ने आर्थिक विवाद के चलते बदले की भावना से केस दर्ज कराया.
हाईकोर्ट ने यह कहते हुए याचिका खारिज कर दी कि जब महिला को पहले से ज्ञात था कि शादी सामाजिक कारणों से संभव नहीं, फिर भी वह चार वर्षों तक सहमति से रिश्ते में रही, तो इसे दुष्कर्म नहीं कहा जा सकता. यह फैसला भविष्य में ऐसे मामलों में कानूनी दृष्टिकोण को दिशा देगा, जहां शादी के वादे के आधार पर दुष्कर्म के आरोप लगाए जाते हैं.
