कांग्रेस ने नए लेबर कोड को लेकर केंद्र सरकार पर सीधा हमला बोला है और आरोप लगाया है कि सरकार असंगठित क्षेत्र के मजदूरों को भ्रमित कर रही है। पार्टी का कहना है कि मौजूदा 29 श्रम-संबंधी कानूनों को सिर्फ री-पैकेज कर 4 नए कोड के रूप में पेश किया गया है, जबकि उन्हें अभी तक नोटिफाई तक नहीं किया गया है। इसके बावजूद इन्हें बड़े सुधार के रूप में प्रचारित किया जा रहा है।
कांग्रेस का दावा है कि सरकार इन कोड्स के जरिए मजदूरों को श्रमिक न्याय दिलाने की दिशा में कोई ठोस कदम नहीं उठा रही, जबकि देश का बड़ा श्रमिक वर्ग स्पष्टता और सुरक्षा दोनों का इंतजार कर रहा है। पार्टी ने केंद्र से सवाल पूछा है कि क्या ये नए कोड उन पाँच मूलभूत मांगों को पूरा कर पाएंगे जो मजदूरों के अधिकार और सुरक्षा से सीधे जुड़ी हैं।
कांग्रेस ने अपनी पांच मांगें भी दोहराईं हैं, जिनमें राष्ट्रीय न्यूनतम मजदूरी को 400 रुपये प्रतिदिन करना (जिसमें मनरेगा भी शामिल हो), 25 लाख रुपये का यूनिवर्सल स्वास्थ्य कवरेज देने वाला स्वास्थ्य का अधिकार कानून, शहरी रोजगार गारंटी कानून, असंगठित श्रमिकों के लिए व्यापक सामाजिक सुरक्षा, और सरकारी विभागों के कोर कार्यों में कॉन्ट्रैक्ट व्यवस्था को खत्म करने की प्रतिबद्धता शामिल है। पार्टी का कहना है कि कर्नाटक और राजस्थान की कांग्रेस सरकारों ने पहले ही गिग वर्कर्स के लिए ऐतिहासिक कानून बनाकर 21वीं सदी के श्रम सुधारों की दिशा में बड़े कदम उठाए हैं। ऐसे में मोदी सरकार को इन राज्यों से सीख लेनी चाहिए।
कांग्रेस ने स्पष्ट किया है कि वह आने वाले संसद के शीतकालीन सत्र में इस मुद्दे को मजबूती से उठाएगी और सरकार से जवाब मांगने के लिए तैयार है। पार्टी के अनुसार, श्रम कानूनों में किए गए बदलावों को लेकर देशभर के नौकरीपेशा और असंगठित श्रमिकों में भारी असमंजस है, जिसकी जिम्मेदार खुद केंद्र सरकार है। कांग्रेस नेता जयराम रमेश ने भी एक्स पर सरकार पर निशाना साधते हुए कहा कि 29 कानूनों को 4 कोड्स में बदलने को सुधार बताना भ्रामक है, क्योंकि नियम अभी तक लागू नहीं हुए हैं। उन्होंने सवाल उठाया कि क्या इन नए कोड्स से मजदूरों की वास्तविक समस्याओं का समाधान हो पाएगा या यह सिर्फ दिखावा भर है।


