अमेरिका के राष्ट्रपति द्वारा भारत पर लगातार टैरिफ बढ़ाने की धमकियों के बाद भारत ने पहली बार आधिकारिक रूप से जवाब दिया है. विदेश मंत्रालय ने रूस से तेल खरीदने के मुद्दे पर अमेरिका और यूरोपीय यूनियन को आईना दिखाया. विदेश मंत्रालय ने कहा कि वे देश हमें क्या नसीहत देंगे जो खुद रूस से अरबों डॉलर का कारोबार कर रहे हैं. विदेश मंत्रालय ने डोनाल्ड ट्रंप की नई धमकी पर जवाब देते हुए कहा..
1.यूक्रेन संघर्ष शुरू होने के बाद से रूस से तेल आयात करने के कारण भारत अमेरिका और यूरोपीय संघ के निशाने पर है। दरअसल, भारत ने रूस से आयात इसलिए शुरू किया क्योंकि संघर्ष शुरू होने के बाद पारंपरिक आपूर्ति यूरोप की ओर मोड़ दी गई थी। उस समय अमेरिका ने वैश्विक ऊर्जा बाज़ारों की स्थिरता को मज़बूत करने के लिए भारत द्वारा ऐसे आयातों को सक्रिय रूप से प्रोत्साहित किया था।
2. भारत के आयात का उद्देश्य भारतीय उपभोक्ताओं के लिए अनुमानित और किफ़ायती ऊर्जा लागत सुनिश्चित करना है. वैश्विक बाज़ार की स्थिति के कारण ये एक अनिवार्य आवश्यकता है. हालाँकि, यह उजागर होता है कि भारत की आलोचना करने वाले वही देश स्वयं रूस के साथ व्यापार में लिप्त हैं. हमारे मामले के विपरीत, ऐसा व्यापार कोई महत्वपूर्ण राष्ट्रीय बाध्यता भी नहीं है.
3. 2024 में यूरोपीय संघ का रूस के साथ वस्तुओं का द्विपक्षीय व्यापार 67.5 बिलियन यूरो था. इसके अतिरिक्त, 2023 में सेवाओं का व्यापार 17.2 बिलियन यूरो होने का अनुमान है. यह उस वर्ष या उसके बाद रूस के साथ भारत के कुल व्यापार से काफ़ी अधिक है. वास्तव में, 2024 में एलएनजी का यूरोपीय आयात रिकॉर्ड 16.5 मिलियन टन तक पहुंच गया, जो 2022 के 15.21 मिलियन टन के पिछले रिकॉर्ड को पार कर गया.
4. यूरोप-रूस व्यापार में न केवल ऊर्जा, बल्कि उर्वरक, खनन उत्पाद, रसायन, लोहा और इस्पात, मशीनरी और परिवहन उपकरण भी शामिल हैं.
5. जहाँ तक संयुक्त राज्य अमेरिका का प्रश्न है, वह अपने परमाणु उद्योग के लिए रूस से यूरेनियम हेक्साफ्लोराइड, अपने इलेक्ट्रिक वाहन उद्योग के लिए पैलेडियम, उर्वरक और रसायन आयात करता रहता है.
6. इस पृष्ठभूमि में, भारत को निशाना बनाना अनुचित और अविवेकपूर्ण है. किसी भी प्रमुख अर्थव्यवस्था की तरह, भारत अपने राष्ट्रीय हितों और आर्थिक सुरक्षा की रक्षा के लिए सभी आवश्यक उपाय करेगा.
